जून 28, 2025

बिहार बाल श्रम बचाव मिशन: देश का दूसरा सबसे बड़ा ऑपरेशन, 3,974 बच्चों को मिली आज़ादी

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बिहार बाल श्रम बचाव मिशन 2025
बिहार बाल श्रम बचाव मिशन 2025

बिहार ने अपने बिहार बाल श्रम बचाव 2024–25 के दौरान बड़ी सफलता हासिल की है। ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन’ (JRC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बिहार बाल श्रम बचाव अभियान में कुल 3,974 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त किया गया है, जिससे राज्य पूरे देश में इस अभियान के मामले में दूसरे स्थान पर आ गया है। इस अभियान की खास बात यह भी है कि बिहार सरकार ने प्रत्येक मुक्त कराए गए बच्चे को ₹25,000 की आर्थिक सहायता देने की नीति बनाई है, जिससे पुनः तस्करी को रोका जा सके।

हमने इस लेख में बिहार बाल श्रम बचाव अभियान से जुड़ी सभी अहम जानकारियाँ दी हैं – सरकारी नीतियाँ, आँकड़े, पुनर्वास की योजना, और आगे की रणनीति।

बिहार बाल श्रम बचाव मिशन 2025

बिहार बाल श्रम बचाव अभियान 2024–25 में बिहार ने कुल 3,974 बच्चों को बाल श्रम की भयावह स्थिति से मुक्त कराया है। यह संख्या बिहार को देशभर में तेलंगाना के बाद दूसरे स्थान पर रखती है, जहाँ सबसे अधिक (11,000+) बच्चों को बचाया गया। यह अभियान केंद्र सरकार की ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ पहल के तहत चलाया जा रहा है।

JRC की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार बाल श्रम बचाव मिशन के तहत बचाये ज़्यादातर बच्चों को ईंट-भट्टों, सड़क किनारे के ढाबों और असंगठित कारखानों से छुड़ाया गया, जहाँ वे अमानवीय हालात में काम कर रहे थे। हालांकि यह बचाव अभियान पहली सीढ़ी है, असली ज़रूरत पुनर्वास और रोकथाम की है, ताकि ये बच्चे दोबारा बाल श्रम के चक्र में न फँसें।

ट्रैकिंग सिस्टम से बचाव को मिली रफ़्तार

श्रम आयुक्त एवं सचिव राजेश भारती ने बताया कि बिहार देश का पहला राज्य है जहाँ चाइल्ड लेबर ट्रैकिंग सिस्टम (CLTS) लागू किया गया है। यह डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बच्चों के रिकॉर्ड को सुरक्षित रखता है, पुनः तस्करी को रोकता है और पुनर्वास की निगरानी करता है।

प्रत्येक बच्चे को ₹25,000 की सहायता

बिहार बाल श्रम बचाव अभियान की सबसे सराहनीय पहल यह रही कि हर एक बच्चे को ₹25,000 की आर्थिक सहायता दी जा रही है। यह राशि मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जा रही है, जिससे बच्चों का समाज में फिर से एकीकरण आसान हो सके।

इस राशि का उद्देश्य यह भी है कि परिवार बच्चों को दोबारा बाल मज़दूरी में न धकेलें। मानसिक स्वास्थ्य सहायता, शिक्षा और पोषण जैसी सुविधाएँ भी इस योजना में शामिल की जा रही हैं, जिससे बचाव केवल एक औपचारिक प्रक्रिया न रहे, बल्कि बच्चों को एक नई शुरुआत मिले।

अत्यंत ख़तरनाक श्रम से बच्चों को छुड़ाया गया

बिहार बाल श्रम बचाव अभियान में जो 90% बच्चे छुड़ाए गए, वे “worst forms of child labour” में लगे थे – जैसे ईंट भट्टों में लंबी शिफ्टें, रसायनों के संपर्क में आना, घरेलू मज़दूरी और होटल-ढाबों में बाल मज़दूरी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और भारत सरकार ने इन्हें सबसे खतरनाक श्रेणियों में रखा है।

ऐसे कामों से बच्चों को शारीरिक-मानसिक चोटें लगती हैं जो जीवनभर असर डालती हैं। ऐसे में इन पर छापेमारी करना ज़रूरी था और सरकार अब इनकी आवृत्ति बढ़ाने की योजना बना रही है।

जन-जागरूकता बनी प्राथमिक ज़रूरत

बिहार राज्य बाल श्रम आयोग के अध्यक्ष अशोक कुमार और उपाध्यक्ष अरविंद कुमार सिंह ने ज़ोर दिया कि यह अभियान केवल सरकारी पहल न रहे, बल्कि समाज की सहभागिता भी ज़रूरी है। विशेष रूप से मीडिया, NGOs और शैक्षणिक संस्थानों की साझेदारी से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

उन्होंने कहा कि जागरूकता ही रोकथाम की पहली सीढ़ी है। कई गरीब परिवारों में जानकारी के अभाव में माता-पिता ही बच्चों को मज़दूरी में धकेल देते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए IEC (Information, Education, Communication) ड्राइव्स चलाई जा रही हैं ताकि लोगों को सरकारी योजनाओं और Right to Education जैसे मौलिक अधिकारों की जानकारी दी जा सके।

असली चुनौती है पुनर्वास

सिविल सोसाइटी संगठनों का मानना है कि बिहार बाल श्रम बचाव अभियान की असली परीक्षा अब शुरू होती है – यानी सतत पुनर्वास। JRC की रिपोर्ट के अनुसार, बचाए गए बच्चों को समाज में स्वीकार्यता, स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा की भारी कमी का सामना करना पड़ता है।

इसलिए ज़रूरत है एक ऐसी प्रणाली की जो हर बच्चे के पुनर्वास की ट्रैकिंग करे, और सुनिश्चित करे कि वह फिर से बाल श्रम में न जाए। बिहार सरकार का श्रम विभाग अब ज़िला स्तर पर पुनर्वास की कार्ययोजना तैयार कर रहा है।

निष्कर्ष

बिहार बाल श्रम बचाव अभियान को देशभर के लिए एक मॉडल मिशन के रूप में देखा जा सकता है। केवल एक साल में 3,974 बच्चों को मुक्त कर बिहार ने यह दिखा दिया कि अगर नीयत और नीति सही हो तो असंभव कुछ नहीं। ट्रैकिंग सिस्टम, ₹25,000 की आर्थिक सहायता और लगातार छापेमारी जैसे कदमों से बिहार इस अभियान में अग्रणी राज्य बन चुका है।

हालाँकि, इस मिशन की सफलता निरंतरता पर निर्भर है। हर साल इस गति को बनाए रखना होगा और केवल बचाव नहीं, बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास को प्राथमिकता देनी होगी। जुलाई में होने वाली सरकारी समीक्षा बैठक से उम्मीद की जा सकती है कि इन मुद्दों को गंभीरता से लिया जाएगा।

हाल ही में बिहार सरकार ने यह भी घोषणा की है कि 2026 तक राज्य में 9 एथनॉल प्लांट चालू होंगे। अगर आपने वह रिपोर्ट मिस कर दी हो, तो आप उसे यहाँ पढ़ सकते हैं।


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